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गुजरात हिमाचल चुनाव: त्वरित टिप्पणी कांग्रेस: जनेऊ, नीच इंसान से अयोध्या निर्णय टलवाने तक की नौटंकी

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Praveen Gugnani guni.pra@gmail.com 9425002270
गुजरात हिमाचल चुनाव: त्वरित टिप्पणी
कांग्रेस: जनेऊ, नीच इंसान से अयोध्या निर्णय टलवाने तक की नौटंकी
देश की राजनैतिक प्रयोगशाला गुजरात में भाजपा की पुनः जीत ने कई राष्ट्रीय मान्यताओं को स्पष्ट किया है तो कई राष्ट्रीय धारणाओं को भंग भी कर दिया है. लेकिन एक बात यह बात बड़ी स्पष्ट हो गई कि कांग्रेस, राजनैतिक पार्टी कम सिनेमाई पार्टी अधिक हो गई है. जिसे हम नौटंकी पार्टी भी कह सकते हैं. ऐसा इसलिए कहा क्योंकि बड़े ही नौटंकिया अंदाज में कांग्रेस और राहूल ने देश को यह विश्वास दिला दिया कि वे गुजरात का चुनाव जीतने हेतु लड़ रहे हैं. कांग्रेस के अंदरखाने इस “गुजरात जीतते हुए दिखने” की नौटंकी की बड़ी तैयारी हुई थी और समूची कांग्रेस ने अभिनय भी बड़ा अच्छा किया. वस्तुतः यह समूची नौटंकी-अभिनय महज राहूल की कांग्रेस अध्यक्ष पद पर निष्कलंक व निष्कंटक ताजपोशी हेतु मंचित किया गया था. कांग्रेस प्रारम्भ से जानती थी की गुजरात में उसके लिए सरकार बनाने की कोई गुंजाइश नही है किंतु सतत-निरंतर कमजोर पड़ते, पार्टी में अलग थलग पड़ते, चुटकुलों का पात्र बनते, कभी बांह चढ़ाते तो कभी मंचों पर कागज़ फाड़ते राहूल गांधी हेतु कांग्रेस अध्यक्ष पद पर आसीन होना इतना आसान नहीं था. टीम सोनिया ने बड़ी चतुराई से गुजरात चुनाव की चौसर पर खेलते हुए कांग्रेस की मिट्टी में राहूल नाम का बीज बो दिया. वरिष्ठ-कनिष्ठ, छोटे-बड़े, देशी-विदेशी कांग्रेसी समझ भी न पाए और गुजरात के चुनावी अभियान के सहारे राहूल कांग्रेस अध्यक्षी की वैतरणी सुलभ होकर पार कर गए. गुजरात में खेली गई नौटंकी में राहूल को बड़ा नेता बनाकर उभारा गया और बिना किसी विरोध-प्रतिरोध के राहूल भारत की 150 वर्षीय पुरानी कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष बन गए. नौटंकी न करते तो भी राहूल कांग्रेस अध्यक्ष बनते ही किंतु तब बोलना सुनना और विरोध के स्वर कुछ अधिक होते. कुछ मान मनौवलें भी करनी पड़ती.
मंदिर मंदिर जाकर दर्शन करने, जनेऊ की फोटो दिखाने, रुद्राक्ष माला की झलक दिखाने, स्वयं को शिव भक्त कहने का यह कांग्रेसी अभियान हिंदू वोटों को रिझाने में सारी कांग्रेसी वर्जनाओं को लांघ गया. गुजरात चुनाव को धार्मिक व सांप्रदायिक कुचक्र में फंसाने के संपूर्ण प्रयास किये गए. गांधीनगर के चर्च के प्रधान पादरी थामस मैकवेन ने एक खुला खत ईसाई मतदाताओं हेतु लिख डाला और प्रयास किया कि कि ईसाई वोटिंग संपूर्णतः मोदी के विरुद्ध हो.
कांग्रेस ने गुजरात में बड़ा ही कुटिल खेल खेला और एक तरफ हिंदू मतों को प्राप्त करने हेतु गुजरात के मंदिर मंदिर माथा टेका तो दूसरी तरफ अपने एतिहासिक मुस्लिम रुझान के अनुसार अपने नेता कपिल सिब्बल से श्रीराम जन्मभूमि अयोध्या के विषय में कोर्ट में हिंदू विरोध की दलील रखी कि जन्मभूमि पर निर्णय को 2019 तक टाल दिया जाए.
स्पष्ट है कि गुजरात व हिमाचल की जनता ने जीएसटी, नोटबंदी सहित मोदी के हर एजेंडे पर अपनी मोहर लगा दी है. गुजरात की जनता विकास के साथ है, मोदी के साथ है.
2017 के गुजरात चुनावों में 2012 की अपेक्षा कम सीटों के मिलने पर देश भर का मीडिया इसे गुजरात माडल पर प्रश्नचिन्ह लगा रहा है किंतु सीटों में आया यह अंतर यह एक चुनावी तिलिस्म का परिणाम है गुजरात माडल की विफलता का नहीं. गुजरात से मोदी का दिल्ली चले जाना भी सीटों के कमी का एक कारण रहा. मोदी के करिश्माई व्यक्तित्व के सामने विजय रुपाणी या उनकी पूर्ववर्ती मुख्यमंत्री आनंदी बेन पटेल गुजरात के मानस को वैसा बाँध नहीं पाए जैसा मोदी ने बांधा था. यह स्वाभाविक ही था. जातिवाद का असर भी एक बड़ा कारण रहा है. भारतीय समाज में जाति एक बड़ा प्रभावी विषय होता है. यदि चुनावी विमर्श जाति के आसपास तनिक सा भी आ जाता है तो आप समझ लीजिये कि यह विमर्श के अन्य विषयों, फिर चाहे वह विकास ही क्यों न हो; को मीलों पीछे छोड़ देगा. गुजरात में कांग्रेस के साथ आये तीन युवा नेताओं ने जातिवाद का जुगाड़ लगाया वह कांग्रेस की सीटों को बढ़ाने में सहायक रहा है.

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